Wednesday 13 July 2011

औरत





तुम माँ हो तुम बहन हो



तुम संगिनी हो तुम जीवनदायिनी हो

आधा संसार हो तुम 

तुम्हारे बग़ैर यह दुनिया बेमाना है



फिर भी सहती हो माँ होकर

बच्चों की पहरेदारी

बीवी होकर शौहर की 

चारदीवारी 



परदे में रहना पड़ता है तुम्हें

सब कुछ सहना पड़ता है तुम्हें

कभी बिकती हो तुम

बाज़ारों में 



किसी की जीनत हो तुम 

तो कुछ लोगों के लिए सिर्फ एक जिस्म

एक ही रूप में न जाने

कितने किरदार निभाती हो तुम



तुम्हारे कोख से निकला हुआ तुम्हारा ही अंश

कितना ज़ुल्म करता है तुम पर 

कैसे सहती हो तुम यह सब 

कभी बीवी कभी बहन कभी माँ बनकर



ऐसा कैसे कर लेती हो तुम 

सहती हो इतनी सारी तकलीफें 

तुम को तो न छोड़ा भगवान ने भी

पूरी कायनात का टीस दे दिया तुम्हारे हिस्से में



लोगों को बेचारी क्यों लगती हो तुम

कोख में ही पता चलने पर 

तुम्हें वंचित कर दिया जाता है 

दुनिया में आने से 



तुम कुछ बोलती क्यों नहीं

क्यों मना नहीं कर देती हो

कोख में साँपों को पनपने से

क्यों नहीं मना कर देती हो वासना का शिकार बनने से



एक ही कारण मुझे नज़र आता

क्योंकि तुम औरत नहीं भगवान हो

जो सिर्फ देता है ज़रूरत में 

तुम बेचारी नहीं बलवान हो महान हो .



मैं तुम्हें सलाम करता हूँ 

हजारों बार नहीं करोड़ों बार

क्योंकि मेरे दुनिया में रहने की

तुम ज़मानत्दार हो.



मंसूर 

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