कहानियाँ
Saturday 30 July 2011
ख़ामोशी
ख़ामोशी की भी अपनी जुबां होती है
कुछ न कहते हुए भी बहोत कुछ कहती है
अगर तुझे कहना न आये तो चुप रहना मंसूर
क्योंकि इससे लोगों में खुशफहमी बनी रहती है |
मंसूर
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